शहडोल संभाग के जंगलों में कई ऐसे पेड़-पौधे और जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं जिनके औषधीय महत्व को जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे. इन्हीं में से एक है दहिमन का पेड़, जो मौजूदा समय में अब यदा-कदा ही पाए जाते हैं. एक तरह से कहा जाए तो विलुप्ति की कगार पर हैं.| जन कल्याण के लिए www.astrograh.com के द्वारा इसकी लकड़ी का ब्रेसलेट उबलब्ध कराया जा रहा है जिसे आप ऑनलाइन खरीद सकते है |
शहडोल। जंगलों से हरे भरे आदिवासी बाहुल्य जिले शहडोल की प्राकृतिक सौंदर्यता देखते ही बनती है. यहां जंगलों में पाए जाने वाले जड़ी बूटियों का भी खूब इस्तेमाल होता है. शहडोल संभाग के जंगलों में कई ऐसे पेड़-पौधे और जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं जिनके औषधीय महत्व को जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे. इन्हीं में से एक है दहिमन का पेड़ (Dahiman Tree), जो मौजूदा समय में अब यदा-कदा ही पाए जाते हैं. एक तरह से कहा जाए तो विलुप्ति की कगार पर हैं, लेकिन इस पेड़ का औषधीय महत्व इतना ज्यादा है कि लोग इसे ढूंढते फिरते हैं.
बड़े काम का दहिमन
भारत को आयुर्वेद का गुरु माना जाता है, क्योंकि यहां सदियों से आयुर्वेद को लेकर बड़े-बड़े शोध होते रहे हैं. यहां ऐसी कई दुर्लभ प्रजातियों के पेड़ पौधे पाए जाते हैं, जो कई असाध्य रोगों के लिए रामबाण उपयोगी साबित हुए हैं. इन्हीं में से एक है दहिमन का पेड़. इसका औषधीय महत्व बहुत माना जाता है. शहडोल संभाग के जंगलों में पहले तो यह काफी ज्यादा तादाद में पाए जाते थे, लेकिन कुछ दशक से ये अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. दहिमन का पेड़ काफी दुर्लभ होता है और आसानी से उसकी पहचान भी नहीं की जा सकती. इस पेड़ के फल, पत्ती, जड़, तना सभी कुछ असाध्य रोगों और शारीरिक समस्या (Physical Problem) के लिए काम आता है कई तरह की बीमारियों में यह संजीवनी का भी काम करता है.
जानिए दहिमन के बारे में ?
दहिमन पेड़ का बोटैनिकल नाम कार्डिया मैक्लोडी हुक है, जिसे दहिमन या देहिपलस के नाम से भी जाना जाता है. दहिमन एक औषधीय गुणों से भरपूर पेड़ है, जो किसी भी प्रकार की संजीवनी बूटी (Sanjeevani herb) से कम नहीं है. फोक मेडिसिन की मानें तो कहा तो यह भी जाता है कि यह कैंसर जैसी घातक बीमारी को भी ठीक करने की क्षमता रखता है. दहिमन के बारे में हमारे ग्रंथों में भी वर्णन किया गया है. लोगों की कुछ धार्मिक आस्था भी इस पेड़ से जुड़ी हुई है.
बीपी कंट्रोल करता है दहिमन
दहिमन पेड़ की लकड़ी के बारे में कहा जाता है कि यह बीपी कंट्रोल (BP Control) करती है. अगर शरीर का कोई अंग दहिमन की लकड़ी से टच रहे तो बीपी नियंत्रित रहता है. आदिवासी समाज के बीच यह काफी ज्यादा देखा जाता है. कई आदिवासियों के गले में दहीमन की लकड़ी की माला देखने को मिलती है. इसके अलावा हाथों में ब्रेसलेट भी पहने होते हैं. इतना ही नहीं कुछ लोग तो अब वाकिंग के लिए भी दहिमन की लकड़ी (Dahiman Wood) लेकर चलना पसंद करते हैं. आदिवासी समाज ही नहीं बल्कि क्षेत्र के हर वर्ग के लोग जो दहीमन के औषधीय महत्व को जानते हैं, वह इसका इस्तेमाल करते हैं. दहिमन की लकड़ी से बीपी कंट्रोल होता है. यह लकवा से बचाता है. टीवी जैसी बीमारियों से बचाता है
आयुर्वेद डॉक्टर ने बताए औषधीय महत्व
आयुर्वेद डॉक्टर बताते हैं कि दहिमन हमारे क्षेत्र में पाया जाने वाला एक बहुत ही मैजिकल पेड़ है. लोग इसकी लकड़ी को गले में धारण करते हैं. दहिमन का नेशनल इंस्टिट्यूट जामनगर में क्लीनिकल ट्रायल (Clinical Trial of Dahiman wood) हुआ है. वहां पर इसका एज ए एंटीमाइक्रोबियल्स का ट्रायल हुआ है. एलोपैथिक मेडिसिन (Allopathic Medicine) से और इसमें वाउंड हीलिंग प्रॉपर्टी पर अच्छा रिजल्ट निकल कर आया है. उन्होंने कहा कि यह एक दुर्भाग्य की बात है कि यह विलुप्ति की कगार पर है. ऐसे मैजिकल पेड़ पौधे और औषधियां बहुत कम बचे हैं.
अंग्रेजों ने कटवा दिए थे पेड़
दहिमन के पौधे को लेकर कुछ बुजुर्ग जानकार बताते हैं कि अंग्रेजों के समय में यह पेड़ बहुत अधिक संख्या में पाए जाते थे. इसके पत्तों पर कुछ लिखा जाए तो यह उभरकर सामने आ जाता है, इसलिए इसके पत्तों का उपयोग क्रांतिकारी गुप्तचर संदेश भेजने के लिए भी किया करते थे. जब इस बात का पता अंग्रेजों को चला तो उन्होंने इस के पेड़ को काटने के आदेश दे दिए. दहिमन का वृक्ष केवल कुछ जगहों पर ही अब बचे हैं. अंग्रेजों के समय में इसे वृहद स्तर पर काटा गया था.