भगवान शिव की लक्षप्रदक्षिणा

जीवन में अपूर्व फल प्राप्ति के लिए भगवान्‍ शिव की लक्ष ( एक लाख ) प्र‍दक्षिणा की जाती है। श्रावणमास, वैशाखमास, कार्तिकमास और माघमास में यह व्रत विशेषरूप से किया जाता है – लिग्‍ड़प्रदक्षिणा: कुर्याद् श्रद्धच्‍या विधिपूर्वका:। श्रावणे माधवे वोर्जे माघे नियमपूवकम्‍ ।। ( व्रतराज )। भगवान्‍ शिव के ऊपर एक लाख दूर्वा चढ़ाने से कष्‍टों का नाश होता है। एक लाख चम्‍पा पुष्‍प चढ़ाने से आयु की वृद्धि होती है। एक लाख अतसी  (तीसी) पुष्‍प चढ़ाने से अपूर्व विद्या की प्राप्ति होती है । ध्‍येय है यह पुष्‍प प्रायश: चैत्र और वैशाख में खेतों में पाया जाता है। भगवान्‍ शिव के लक्षप्रदक्षिणा से पंचमहापातक नष्‍ट हो जाते है। प्र‍दक्षिणा नंगे पैर करनी चाहिए । उस समय मन को अत्‍यन्‍त पवित्र रखना चाहिए। प्रदक्षिणा की पूर्ति के बाद हवन एवं ब्राम्‍हा्ण भोजन कराना चाहिए । यथाशक्ति दान एवं दक्षिणा देनी चाहिए।

                           श्रीहरिविष्‍णु की लक्षप्रदक्षिणा

भगवान्‍ श्रीहरिविष्‍णु की लक्षप्रदक्षिणा करने से मनुष्‍य जीवन सफल हो जाता है और मोक्ष पद की प्राप्ति होती है। वैशाख, कार्तिक और माघमास के अतिरिक्‍त आषाढ़मास क एकादशी,द्वादशी

अथवा पूर्णिमा से श्रीहरिविष्‍णु का लक्षप्रदक्षिणा आरम्‍भ की जाती है। संकल्‍पपूर्वक प्रदक्षिणा को आरम्भ किया जाता है। प्रदक्षिणा से पूर्व श्री‍हरिकी विशेष पूजा की जाती है । प्रदक्षिणा समाप्ति के बाद उद्यापन करना चाहिए । क्षमता होने पर पर श्रीविष्‍णु की स्‍वर्ण प्रतिमा का दान प्राप्ति करना चाहिए।

       श्रीविष्‍णु भगवान्‍ को एक लाख तुलसीपत्र चढ़ाने से उनकी परमकृपा की प्राप्ति होती है। एक लाख गेहॅूं या अक्षत चढ़ाने से दुख का नाश होता है। एक लाख मिश्रित पुष्‍पों को चढ़ाने से लौकिक कामनाओं की प्राप्ति होती है। इस व्रत को पूर्णिमातिथि में समाप्‍त करना चाहिए।

                            भगवती तुलसी की लक्षप्रदक्षिणा

शास्‍त्रो में श्रीतुलसी को श्रीहरि विष्‍णु की पत्‍नी कहा गया है। अत: कार्तिक शुक्‍ल एकादशी के दिन शालिग्राम के साथ इन ( तुलसी ) का विवाह कराया जाता है। तुलसी के पौधे की पूजा गंध, धूप,दीप, नैवद्य से की जात है। १०८ बार गायत्री मंत्र जप करके प्रदक्षिणा आरम्‍भ की जाती है। प्रदक्षिणा आरम्‍भ करने से पूर्व भगवती तुलसी का ध्‍यान किया जाता है-

      देवि त्रैलाक्‍य जननी सर्वलोकैक- पावनि। आगच्छ भगवत्‍यत्र प्रसीद तुलसि प्रिये।।

      देवैस्‍त्‍वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्‍वरै। नमो नमसते तुलसि पापं हर हरिप्रये।।

भगवती तुलसी की पचास परिक्रमा करने से धन की प्राप्ति होती हे। सौ परिक्रमा करने से विजयश्री की प्राप्ति होती है। एक हजार परिक्रमा करने से विद्या की प्राप्ति होती है। दस हजार प्ररिक्रमा करने से सर्वसम्‍पति प्राप्ति तथा एक लाख परिक्रमा करने से सर्वसिद्धि क प्राप्ति होती है।

                             श्रीहनुमद् लक्षप्रदक्षिणा

     प्रतादिबाधा, शत्रुबाधा निवारण हेतु तथा ग्रहदोष शांति हेतु श्रीहनुमान्‍ जी की क लाख प्रदक्षिणा की जाती है। प्रदक्षिणा आरम्‍भ करने से पहले श्रीहनुमान्‍ जी का पूजन और ध्‍यान किया जाता है। प्र‍दक्षिणा को चातुर्मास्‍य काल में करना चाहिए।