देवप्रतिष्‍ठा मुहूर्त

      जलाशयारामसुरप्रतिष्‍ठा सौम्‍यायने जीवशशाक्‍डशुक्रे।

      दृश्‍ये मृदुक्षिप्रचरध्रुवे स्‍यात्‍ सिते स्‍वर्क्षतिथिक्षणे वा ।।  मु.चि. २/६१.

जलाशय ( तालाब, पोखरा, वापी, कूप ), आराम ( उपवन, बगीचा, उद्यान, ), सुर ( देव ) की प्रतिष्‍ठा सौम्‍य ( उतर) अयन में गुरू, शुक्र, चन्‍द्र, के दृश्‍य रहने पर मृदु ( मृगशीर्ष, रेवती, चित्रा, अनुराधा ), क्षिप्र ( हस्‍त, आश्विनी, पुष्‍य ), चर ( स्वाती , पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्‍ठा, शतभिषा ), ध्रुव ( उ. फा., उ.षा., उ.भा., रोहिणी ) नक्षत्रो में शुक्‍लपक्ष में की जाती है। इन १६ नक्षत्रों में देवप्रतिमा की प्रतिष्‍ठा की जाती है।

शुक्‍लपक्ष में प्रतिमा प्रतिष्‍ठा करें – मुहूर्तचिन्‍तामणि में पक्षेसिते कहकर शुक्‍लपक्ष को देव प्राणप्रतिष्‍ठा हेतु स्‍वीकार किया गया है। मत्‍स्‍यपुराण में भी शुक्‍ल पक्ष में ही प्रतिमा प्राणप्रतिष्‍ठा करने को कहा गया है- प्राप्‍यपक्षं शुभं शुक्‍लमतीते चौतरायणे। कतिपय ग्रन्थों में माघादि पॉच महीनों में कृष्‍णपक्ष की पंचमीतिथि तक देवप्रतिष्‍ठा वहित मानी गयी है- देवतारामवाप्‍यादिप्रतिष्‍ठामुतरायणे। माघादिपच्‍जमासेषु कृष्‍णेप्‍यापच्‍जमीदिनम्‍ ।।

देव प्रतिमा की प्रतिष्ठा माघ, फाल्‍गुन, वैशाख, ज्‍येष्‍ठ, आषाढ़ ( हरिशयनपूर्व ) पॉच मासों में की जाती है। उग्र देवों की प्रतिष्‍ठा दक्षिणायन में भी होती है जैसे – काली, नृसिंह, वराह, वामन,महिषवाहिनी, महाविद्या, श्‍मशानदेवता , भैरव आदि। देवप्रतिष्‍ठा में मंगलवार, रिक्‍ततिथि तथा अमावास्‍या वर्जित है। सूर्य सिंह लग्‍न, हस्‍त नक्षत्र में, चन्‍द्रादि आठ ग्रह पुष्‍य नक्षत्र में , ब्रम्‍हा् कुम्‍भ लग्‍न, पुष्‍य- श्रवण- अभिजित्‍ में, विष्‍णु कन्‍या लग्‍न पुष्‍य – श्रावण- अभिजित् में , शिवपार्वती  मिथुन लग्‍न , पुष्‍य- श्रवण – अभिजित्‍ में भगवती दुर्गा मूल नक्षत्र में कुबेर- कार्तिकेय अनुराधा लग्‍न में प्रतिष्ठित किये जाते है। स्थिर ( २, ५, ८, ११ ) लग्‍न में सभी देवों की प्रतिष्‍ठा की जाती है।

ग्राह्य नक्षत्र

 अश्विनी रोहिनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्‍य, उ.फा.,हस्‍त, चित्रा, स्‍वाती, अनुराधा, उ.षा., श्रवण, धनिष्‍ठा, शतभिषा, उ.भा., रेवती ( १६ नक्षत्र )

 ग्राह्य तिथि-

         देवर्षि नारद के मत से द्वितया, तृतीया, पंचमी, षष्‍ठी, सप्‍तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी ओर पूर्णिमा को देवप्रतिष्‍ठा करनी चाहिए- द्वितीयसादिद्वयो: पच्‍जम्‍यादित: तिसृषु क्रमात्‍ । दशम्‍यादिचतसृषु पौणमास्‍यां विशेषत:। मुहूर्त चिन्‍तामणि के अनुसार प्रतिमा प्रतिष्‍ठा रिक्‍ता तिथि (४, ९, १४ ) को छोड़कर सभी तिथियों में की जाती है- रिक्‍ता तिथि वर्जते ।

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