नवीन भवन निर्माण हेतु गृहारम्भ वैशाख, श्रावण, मार्गशीर्ष पौष एवं फाल्गुन मास में करना चाहिए । इन पॉंच चान्द्रमासों में ही गृहारम्भ करना शुभकारी होता है। चैत्र में शोक, ज्येष्ठ में मृत्यू आषाढ़ में पशुनाश, भाद्रपद में मृत्यू , आश्विन में कलह, कार्तिक में हानि और माघ में अग्निभय उत्पन्न होता है। अत: चैत्र ज्येष्ठ, आषाढ़, भद्रपद, आश्विन, कार्तिक और माघ मास में गृहारम्भ नही करना चाहिए। गृहारम्भ ( शिलान्यास ) रविवार, मंगलवार को नहीं किया जाता है। सोमवार, बुधवार, गुरूवार, शुक्रवार और शनिवार को ही किया जाता है। रोहिणी, मृगशीर्ष, पुष्य, तीनों उतरा, हस्त, चित्रा,स्वाती, अनुराधा, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती गृहारम्भ हेतु श्रेष्ठ नक्षत्र हैं ( कुल १३ नक्षत्र )। गृहारम्भ में अग्निबाण और पंचक का त्याग यिका जाता है। अत: धनिष्ठा का पूर्वार्द्ध मात्र गृहारम्भ में ग्राहा् है। जब सूर्य मेष, वृष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, मकर और कुम्भ राशि में होता है तभी गृहारम्भ किया जाता है। १.२.३.५.७.१०.११.१३.१५ तिथियों में गृहारम्भ किया जाता है। भूशयन दोष होने पर गृहारम्भ नहीं करना चाहिए या परिहारपूर्वक करना चाहिए।
चैत्र एवं भाद्रपद में गृहारम्भ कैसे ?
( गलत परम्परा न डाले )
इस वर्ष संवत् २०७४ में भाद्रपदशुक्लापूर्णिमा तथा चैत्रकृष्ण द्वीतीया में गृहारम्भ का मुहूर्त श्रीह्रषीकेशपंचांगम् एवं श्रीआदित्यपंचांगम् में दिया है। कतिपय अन्य पंचांगो ने इन दोनों महीनों में गृहारम्भ का मुहूर्त नही दिया है। श्रीह्रषीकेशपंचांग के स्थायी पृष्ठ ३७ पर गृहारम्भमुहूर्त सारणी में भाद्रपद एवं चैत्रमास नहीं है। श्रीआदित्यपंचांगम् में वास्तुप्रदीप ग्रन्थ (१/१७) का उल्लेख करते हुए कहा है कि –मेषार्क में चैत्र सिंहार्क में भाद्रपद मास में गृहारम्भ होता है, जबकि ग्रन्थ में कर्क- सिंह के सूर्य में श्रावणमास में गृहारम्भ कहा गया है। यहॉं भवति भाद्रपदेsपि सिंह का आशय नही है। वसिष्ठसंहिता,नारदसंहिता, मुहूर्त चिन्तामणि, विश्वकर्मप्रकाश तथा वास्तुराजवल्लभ आदि गन्थों में चैत्र एवं भाद्रपद अस्वीकार्य है। वास्तुप्रदीपग्रन्थ में भी स्पष्ट दिया है- चैत्रे व्याधिमवाप्नोति यो गृहं कारयेत्रर:। श्रावणे मित्रलाभस्तु हानिर्भाद्रपदे तथा। इस वचन से आदित्य पंचांग की स्थापना स्वत: खण्डित हो जाती है । यदि मासों की संख्या बढ़ानी ही है तो वसिष्ठसंहिता एवं नारदसंहिता के आधार पर माघमास का ग्रहण करना चाहिए। कन्या, मिथुन, धनु, एवं मीन के सूर्य में चान्द्रमास प्रशस्त होने पर भी गृहारम्भ वर्ज्य है। मुहूर्तशास्त्र का उभ्दव पुराण एवं संहिता ग्रन्थों से हुआ है। वसिष्ठसंहिता,गर्गसंहिता, नारदसंहिता में मुहूर्त विषय पर विशद प्रकाश प्राप्त होता है। अब यहॉ विचार करते हैं कि चान्द्रमास और सौरमास के कारण गृहारम्भ मुहूर्त के संदर्भ में विरोध क्यों प्राप्त होता है ?नारदसंहिता मं गृहारम्भ में मार्गशीर्ष – फाल्गुन- वैशाख- माघ- श्रावण- कार्तिक चान्द्रमास स्वीकृत है-
सौम्यफाल्गुनवैशाखमाघश्रावणकार्तिका: मासा: स्युर्गृह- निर्माणे पुत्रारोग्यधनप्रदा:।।३१/२४ देवर्षि नारद के अनुसार मेष, वृष, कर्क, सिंह, तुला, वृश्चिक, मकर, कुम्भ का सूर्य होने पर ह गृहारम्भ करना चाहिए। इनमे गृहारम्भ करने से क्रमश: शुभत्व, धनवृद्धि, शुभत्व, भृत्यवृद्धि, सुख, धनवृद्धि, धनागम, रत्नलाभ की प्राप्ति होती है। मिथुन, कन्या, धनु, मीन के सूर्य में गृहारम्भ करने से मृत्यू ,रोग, महाहानि तथा भवन नाशभय होता है-
गृहास्थापनं सूर्ये मेषस्थे शुभदं भवेत् । वृषस्थे धनवृद्धिस्यान् मिथुने मरणं ध्रुवम् ।।
कर्कटे शुभदं प्रोक्तं सिंहे भृत्यविवर्धनम् । कन्यारोगं तुले सौख्यं वृश्चिके धनवर्धनम् ।।
कार्मुके तु महाहानिर्मकरे स्याद्धनागम:। कुम्भे तु रत्नलाभ: स्यान् मीने सदाभयावहम् ।।