गुरु दीक्षा कार्यक्रम

             गुरु दीक्षा’ व्यापक अर्थों वाला शब्द है | किन्तु गुरु से जुड़ जाने पर उनसे शिक्षा प्राप्त होने को प्रधानत: ‘दीक्षा’ कहते हैं.| ‘दीक्षा’ कई प्रकार की होती है | ‘दीक्षा’ का सूक्ष्म अर्थ ये भी होता है की यदि गुरु तपस्वी हो और सम्पूर्ण हो तो उसकी तपस्या का अंश शिष्य को भी मिल जाता है.| किन्तु ‘दीक्षा’ प्रबल भाव होने पर ही संपन्न होती है.| कहा जाता है कि ‘दीक्षा’ और साधना, ‘अमृत’ जैसा पदार्थ है किन्तु दोनों पात्रों का ठीक होना जरूरी है अर्थात गुरु ‘योग्य’ हो और शिष्य भी ‘योग्य’ हो | दिव्य साधनाएँ व दीक्षाएं चरम पर ही फलीभूत होती हैं | ‘दीक्षा’ ही धर्म के आगे बढ़ने का आधार है | ‘दीक्षा’ साधारण से ले कर ‘ब्रहमपात’ से भी ऊपर तक जाती हैं | ये तो आपके और गुरु के सामर्थ्य पर निर्भर करता है कि आप कहाँ तक की अनुभूति पाते हैं.| सबसे बड़ी और अतार्किक सी जान पड़ने वाली मान्यता है कि ‘दीक्षा’ किसी आम आदमी को साधारण से ले कर ‘महामानव’ तक बना सकती है | ‘दीक्षा’ से कोई ऐसा दुःख नहीं जो नष्ट न हो. पर नियम वही है कि इसके लिए पात्र का योग्य, समर्पित और आध्यात्मिक बुद्धि का होना जरूरी है.| वर्त्तमान समय में सभी ‘दीक्षा’ के योग्य नहीं हैं जैसा की प्राचीन काल में था | जब मनुष्य अहंकार से ऊपर ,दोषारोपण की निम्न वृत्ति से ऊपर, भौतिक तार्किक बृत्ति से ऊपर जाए, तो ही वास्तविक दीक्षा संभव है | ऐसा होना वर्त्तमान समय में कम संभव है, क्योंकि जहाँ सर्वत्र ‘धर्म’ को ‘व्यापार’ बना दिया गया है और ‘कपटी, भ्रष्ट, स्वार्थी ठेकेदारों नें डेरा जमा रखा है. ऐसे में संदेह होगा ही और वहीँ ‘दीक्षा’ फल नहीं दे पाएगी अथवा दीक्षा देने का ही योग्य गुरु मिल पायेगा संदिग्ध हो जाता है | ये बड़ी ही ‘धर्मसंकट’ वाली स्थिति है कि क्या किया जाए ,क्या केवल प्रारब्ध को आधार मान कर ‘योग्य गुरु’ और ‘योग्य दीक्षा’ की कामना करनी चाहिए और इंतज़ार करना चाहिए | हाँ इंतज़ार तब तक करना चाहिए जब तक आप पूर्ण संतुष्ट न हो जाएँ| एक बात और साथ ही की आप खुद को जब तक शिष्यत्व के योग्य न बना लें |क्योंकि इस पावन धरती पर योग्य गुरुओं की कमी नहीं पर उन्हें योग्य शिष्य ही चाहिए| अतः सबसे पहले तो खुद को योग्य शिष्य बनाएं, शिष्यत्व की पात्रता खुस में विकसित करें और तब गुरु का इंतज़ार करें| यहाँ वहां प्रचार अथवा जल्दबाजी में दीक्षा न ले लें, अन्यथा यहाँ तो कुछ मिलेगा नहीं और उपर का भी रास्ता बाधित हो सकता है|
‘दीक्षा’ लेने का वास्तविक नियम तो ये है कि घर का गृहस्थी का त्याग का ‘गुरु’ की वर्षों सेवा करे| पारंपरिक और आश्रम युग में ऐसा ही होता है | उनके लिए ‘भिक्षा’ मांग कर लाये और वही ‘भिक्षा’ ‘गुरु’ को अर्पित करे. ‘गुरु’ की ‘चरण पादुका पूजन’ करते हुए तेल आदि से गुरु की ‘सेवा’ मालिश कर उनके ‘वस्त्रों’ को बिधि पूर्वक साफ कर ‘गुरु’ के ‘भोजन विश्राम’ आदि की व्यवस्था साधक करे| ‘गुरु’ को किसी भांति कष्ट न पहुंचाए| ‘गुरु’ को ही इष्ट व ‘शिव’ मानें.’गुरु’ की व ‘शिव’ की ‘निंदा’ न सुनें न करें| करने वालों से ‘सख्ती से निपटे’ जिसके लिए ‘गुरु’ से ‘युद्ध कौशल’ आदि ‘विद्याओं’ को सीखे व समय पर ‘दुष्टों’ व ‘धर्म का विरोध करने वालों’ पर इसका प्रयोग करे.|’ज्ञान से’ ‘तर्क से’ ‘विवेक बाहुबल से’ ‘धर्म विरोधियों’ का सामना करें| योद्धा साधुओं का सम्मान करें.| सिद्धों का आचरण करें| गुरु मार्गी ‘ज्ञान मार्गी’ हों.आदि अदि. अनेक बाते हैं,जो पारंपरिक रूप से चली आ रही हैं और अधिकतर मूल साधू सम्प्रदायों में आज भी चल रही हैं| आज का सामान्य गृहस्थ इतना तो नहीं कर पायेगा , इसे जान कर ‘आम आदमी’ तो भाग खड़ा होगा| आज लोग अपने ‘माता-पिता’ के चरण पानी से नहीं धोते उनकी बृद्ध होने पर ‘सेवा-मालिश’ आदि नहीं करते, तो ‘गुरुओं’ की बात कोसों दूर हैं| ऐसा नहीं की बिलकुल ऐसे शिष्य हैं ही नहीं किन्तु वर्त्तमान सामाजिक संरचना में अधिकाँश के लिए यह मुश्किल है| आज के समय इतना भी पर्याप्त है कि आप गुरु के प्रति श्रद्धा भाव और समर्पण ,उनपर अट्टू विश्वास रखें| सामर्थ्यानुसार ‘दक्षिणा’ आदि दे कर उनसे ‘दीक्षा’ के लिए प्रार्थना करें| यदि आप धन हीन है तो ‘गुरु के चरणों’ में निवेदन करें | वो तो दुःख को जानने वाले है. आपको भी कृपावश अनुग्रहित अवश्य करेंगे. |यदि आपमें पात्रता हो तो ‘गुरु’ आपकी स्थिति ,आयु, लिंग, वर्ण, जाती, रंग ,देश काल, स्वास्थ्य, व्यवसाय आदि नहीं देखते| वो तो केवल आपको सीने से लगा लेते हैं| ‘दीक्षा’ लेने के अनेक ‘शास्त्रीय व पंथानुसार’ नियम हैं पर सामर्थ्यवान गुरु के लिए ये ‘नियम’ गौण ही होते हैं|

एस्ट्रो गृह सेवा – एस्ट्रो गृह के माध्यम से आप गुरु दीक्षा ले सकते है |वैसे तो दीक्षा का पर्व “गुरु पूर्णिमा“ है| लेकिन एस्ट्रो गृह के माध्यम से आप हमारे गुरु जी से दीक्षा ले सकते है |वैदिक रीति एवं नियम के अनुसार हर व्यक्ति को दीक्षा लेनी चाहिए | बिना दीक्षा के किये गए जप, अनुष्ठान, कन्या दान एवं अन्य शुभ कार्य नहीं करना चाहिए| यदि आप को सच्चे सद्गुरु की तलाश है तो आप एस्ट्रो गृह के माध्यम से अपनी तलाश पूर्ण कर सकते है|

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