मार्गशीर्ष ( अगहन ) मास के प्रथम रविवार से यह सूर्यप्रधान व्रत आरम्भ किया जाता है। इसक समाप्ति वैशाखमास शुक्लपक्ष के अन्तिम रविवार को की जाती है।
मार्गशीर्ष मास में तीन तुलसी पता खाकर रहा जाता है। प्रदोष काल में जल से पारण किया जाता है। पौषमास में तीन पल गोघृत पकर रहा जाता है। माघमास में तीन मुट्ठी तिल खाया जाता है। फाल्गुन मास में तीन पल दही ग्रहण करते है। चैत्र मास तीन पल दुग्ध, वैशाख मास में तीन पल गोबर ग्रहण किया जाता है। ध्येय है एक पल प्रायश: ५७ ग्राम के तुल्य होता है, तीन पल १७१ ग्राम के तुल्य ।
ज्येष्ठ से कार्ति मास के रविवार व्रत में अलग – अलग पदार्थो का ग्रहण उपदेशित है, जैसे- ज्येष्ठ तीन अंजली जल पिया जाता है। आषाढ़ में तीन काली ( गोल ) मिर्च ग्रहण किया जाता है,श्रावणमास में तीन पल सक्तु लिया जाता है, भाद्रमास में तन पल गोमूत्र , आश्विन में तीन पल शर्करा तथा कार्तिक में तीन पल हविष्य ( खीर ) लिया जाता है।
रविवार व्रत से समस्त त्वचा रोगों का नाश, नेत्रष्ट का नाश तथा ह्रदयकष्ट का नाश होता है। इस व्रत से राज्यत्व की प्राप्ति होती है। शाम्बपुराण में रविवार व्रत का विशेष वर्णन प्राप्त होता है।