रुद्राभिषेक

रुद्राभिषेक

यह शुक्लयजुर्वेद का मुख्य भाग है। इसमें मुख्यत: आठ अध्याय हैं पर अंतिम में शान्त्यध्याय: नामक नवम तथा स्वस्तिप्रार्थनामन्त्राध्याय: नामक दशम अध्याय भी हैं। इसके प्रथम अध्याय में कुल 10 श्लोक है तथा सर्वप्रथम गणेशावाहन मंत्र है, प्रथम अध्याय में शिवसंकल्पसुक्त है। द्वितीय अध्याय में कुल 22 वैदिक श्लोक हैं जिनमें पुरुसुक्त (मुख्यत: 16 श्लोक) है। इसी प्रकार आदित्य सुक्त तथा वज्र सुक्त भी सम्मिलित हैं। पंचम अध्याय में परम् लाभदायक रुद्रसुक्त है, इसमें कुल 66 श्लोक हैं। छठें अध्याय के पंचम श्लोक के रूप में महान महामृत्युंजयश्लोक है। सप्तम अध्याय में 7 श्लोकों की अरण्यक श्रुति है प्रायश्चित्त हवन आदि में इसका उपयोग होता है। अष्टम अध्याय को नमक-चमक भी कहते हैं जिसमें 24 श्लोक हैं।

श्लोकों की संख्या की सूची निम्नांकित है—

  1. प्रथम अध्याय                 = 10 श्लोक
  2. द्वितीय अध्याय               = 22 श्लोक
  3. तृतीय अध्याय                = 17 श्लोक
  4. चतुर्थ अध्याय                 = 17 श्लोक
  5. पंचम अध्याय                  = 66 श्लोक
  6. षष्ठम अध्याय                  = 8 श्लोक
  7. सप्तम अध्याय                 = 7 श्लोक
  8. अष्टम अध्याय                 = 29 श्लोक
  9. शान्त्यध्याय:                  = 24 श्लोक
  10. स्वस्तिप्रार्थनामंत्राध्याय:  = 13 श्लोक

सौजन्य: प्रकाशित रुद्राष्टाध्यायी पुस्तिका से।

शिवसंकल्प सुक्त

प्रथम अध्याय के 5वे श्लोक से इसकी शुरुआत है–

यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति। दूरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥१॥

अर्थ: जो मन जागते हुए मनुष्य से बहुत दूर तक चला जाता है, वही द्युतिमान् मन सुषुप्ति अवस्था में सोते हुए मनुष्य के समीप आकर लीन हो जाता है तथा जो दूरतक जाने वाला और जो प्रकाशमान श्रोत आदि इन्द्रियों को ज्योति देने वाला है, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो।

येन कर्माण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः। यदपूर्वं यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥२॥

अर्थ: कर्म अनुष्ठान में तत्पर बुद्धि संपन्न मेधावी पुरुष यज्ञ में जिस मन से शुभ कर्मों को करते हैं, प्राजाजन के शरीर में और यज्ञीय पदार्थों के ज्ञान में जो मन अद्भुत पूज्य भाव से स्थित है, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो।

यत् प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च यज्ज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु। यस्मान्न ऋते किंचन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥३॥

अर्थ: जो मन प्रकर्ष ज्ञान स्वरूप, चित्त स्वरूप और धैर्य रूप हैं; जो अविनाशी मन प्राणियों के भीतर ज्योति रूप से विद्यमान है और जिसकी सहायता के बिना कोई कर्म नहीं किया जा सकता, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो।

येनेदं भूतं भुवनं भविष्यत्परिगृहीतममृतेन सर्वम्। येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥४॥

अर्थ जिस शाश्वत मन के द्वारा भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्यकाल की सारी वस्तुएँ सब ओर से ज्ञात होती हैं और जिस मन के द्वारा सात होतावाला यज्ञ विस्तारित किया जाता है, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो।

यस्मिन्नृचः साम यजूं गुँ षि यस्मिन् प्रतिष्ठिता रथनाभाविवाराः। यस्मिंश्चित्तं सर्वमोतं प्रजानां तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ॥५॥

अर्थ: जिस मन में ऋग्वेद की ऋचाएँ और जिसमें सामवेद तथा यजुर्वेद के मंत्र उसी प्रकार प्रतिष्ठित है, जैसे रथ चक्र की नाभि में तीलियाँ जुड़े रहते हैं, जिस मन में प्रजाओं का सारा ज्ञान (पट में तंतु की भाँति) ओतप्रोत रहता है, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो।

सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान् नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजिन इव। हृत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥६॥

अर्थ: जो मन मनुष्य को अपनी इच्छा के अनुसार उसी प्रकार घुमाता है, जैसे कोई अच्छा सारथि लगाम के सहारे वेगवान् घोड़ों को अपनी इच्छा के अनुसार नियंत्रित करता है; बाल्य, यौवन, वार्धक्य आदि से रहित तथा अति वेगवान् जो मन हृदय में स्थित है, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो।[6]

रुद्राभिषेक में शिवलिंग की विधिवत् पूजा की जाती है, इसमें आप दुग्ध, घृत, जल, गन्ने का रस, शक्कर मिश्रित जल अपने इच्छा के अनुसार उपयोग कर सकते हैं।

पूजन – सभी देवी देवताओं का विधिवत् पूजन करें।

अभिषेक – श्रिंगी द्वारा अभिषेक करें, रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करें।

रुद्री पाठ की विधियाँ–

शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी का पाठ (1 या 11 बार)

रुद्राष्टाध्यायी का पंचम और अष्टम अध्याय का पाठ।

कृष्णयजुर्वेदीय पाठ का “नमक” पाठ 11 बार उसके बाद “चमक” पाठ के एक श्लोक का पाठ। (एकादश रूद्र पाठ)

शिव सहस्रनाम का पाठ।

रूद्र सुक्त का पंचम अध्याय का पाठ।[7]

उत्तर पूजन पुन: पूजन करें।

बिल्वार्पण आचार्य शिवमहिम्न स्तोत्र आदि शिव श्रोत्रो का पाठ करते हुए बिल्व अर्पित करें।

आरती मंगल आरती करें।

पार्थिव पूजन

सर्वप्रथम पवित्रीकरण करें।

शिवलिंग निर्माण – सर्वप्रथम काली मिट्टी से शिवलिंग निर्माण करें यहाँ आप 121 रुद्री बनावें, आचार्य से पूछें कि क्या क्या बनाना होगा।

प्रतिष्ठा प्रतिष्ठा करें।

गणेश पूजन गणेश तथा आवाहित देवताओं का पूजन करें।

शिव पूजन शिवलिंग का पूजन करें।

अभिषेक रुद्राभिषेक करें आचार्य रुद्री का पाठ करें।

उत्तर पूजन  शिव पूजन करें।

बिल्वार्पण  आचार्य स्तोत्र पाठ करें यजमान बिल्व अर्पित करें।

हवन हवन करें।

आरती

दक्षिणा आचार्य को दक्षिणा भूयषी दें।

विसर्जन[8]

रुद्र अर्थात भूतभावन शिव का अभिषेक। शिव और रुद्र परस्पर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही ‘रुद्र’ कहा जाता है, क्योंकि रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानी भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।

 रुद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका अर्थात सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रुद्र की आत्मा हैं। हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है। साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं। किसी खास मनोरथ की पूर्ति के लिए तदनुसार पूजन सामग्री तथा विधि से रुद्राभिषेक किया जाता है।

परंतु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों में मंत्र, गोदुग्ध या अन्य दूध मिलाकर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग-अलग अथवा सबको मिलाकर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है। इस प्रकार विविध द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी पुराने नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत ही उत्तम फल देता है किंतु यदि पारद के शिवलिंग का अभिषेक किया जाए तो बहुत ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम मिलता है। रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है।

वेदों में विद्वानों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। पुराणों में तो इससे संबंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त होता है। वेदों और पुराणों में रुद्राभिषेक के बारे में कहा गया है कि रावण ने अपने दसों सिरों को काटकर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर दिया था जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया।

भस्मासुर ने शिवलिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओं से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया। कालसर्प योग, गृहक्लेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यों की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।

ज्योतिर्लिंग क्षेत्र एवं तीर्थस्थान तथा शिवरात्रि प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि पर्वों में शिववास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है। वस्तुत: शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं। अत: हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं।

स्वयं सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है कि जब हम अभिषेक करते हैं तो स्वयं महादेव साक्षात उस अभिषेक को ग्रहण करते हैं। संसार में ऐसी कोई वस्तु, वैभव, सुख नहीं है, जो हमें रुद्राभिषेक करने या करवाने से प्राप्त नहीं हो सकता है।

शिवपुराण में ऋषियों के पूछने पर स्वयं भगवान शिव ने अभिषेक का महत्व बताते हुए कहा है कि सभी प्रकार की आसक्तियों से रहित होकर जो मेरा अभिषेक करता है वह सभी कामनाओं को प्राप्त करता है। 

साधारण रूप से भगवान शिव का अभिषेक जल या गंगाजल से होता है परंतु विशेष अवसर व विशेष मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए दूध, दही, घी, शहद, चने की दाल, सरसों तेल, काले तिल, आदि कई सामग्रियों से महादेव के अभिषेक की विधि प्रचिलत है. तो कैसे महादेव का अभिषेक कर आप उनका आशीर्वाद पाएं उससे पहले ये जानना बहुत जरूरी है कि किस सामग्री से किया गया अभिषेक आपकी कौन सी मनोकामनाओं को पूरा कर सकता है साथ ही रूद्राभिषेक को करने का सही विधि-विधान क्या हो क्योंकि मान्यता है कि अभिषेक के दौरान पूजन विधि के साथ-साथ मंत्रों का जाप भी बेहद आवश्यक माना गया है फिर महामृत्युंजय मंत्र का जाप हो, गायत्री मंत्र हो या फिर भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र.

शास्त्रों में कामना की प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार के द्रव्यों से अभिषेक का वर्णन है। 

1) जल से अभिषेक
– हर तरह के दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव का जल से अभिषेक करें
– भगवान शिव के बाल स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘शुद्ध जल’ भर कर पात्र पर कुमकुम का तिलक करें
– ॐ इन्द्राय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर जल की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें
– अभिषेक करेत हुए ॐ तं त्रिलोकीनाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें
– शिवलिंग को वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें

2) दूध से अभिषेक
– शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए दूध से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘प्रकाशमय’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘दूध’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ श्री कामधेनवे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर दूध की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
– अभिषेक करते हुए ॐ सकल लोकैक गुरुर्वै नम: मंत्र का जाप करें
– शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें

3) फलों का रस
– अखंड धन लाभ व हर तरह के कर्ज से मुक्ति के लिए भगवान शिव का फलों के रस से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘नील कंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘गन्ने का रस’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ कुबेराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर फलों का रस की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
– अभिषेक करते हुए -ॐ ह्रुं नीलकंठाय स्वाहा मंत्र का जाप करें
– शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें

4) सरसों के तेल से अभिषेक
– ग्रहबाधा नाश हेतु भगवान शिव का सरसों के तेल से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘प्रलयंकर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘सरसों का तेल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ भं भैरवाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर सरसों के तेल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
– अभिषेक करते हुए ॐ नाथ नाथाय नाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें
– शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें

5) चने की दाल
– किसी भी शुभ कार्य के आरंभ होने व कार्य में उन्नति के लिए भगवान शिव का चने की दाल से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘समाधी स्थित’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘चने की दाल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ यक्षनाथाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर चने की दाल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
– अभिषेक करेत हुए -ॐ शं शम्भवाय नम: मंत्र का जाप करें
– शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें

6) काले तिल से अभिषेक
– तंत्र बाधा नाश हेतु व बुरी नजर से बचाव के लिए काले तिल से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘नीलवर्ण’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘काले तिल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ हुं कालेश्वराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर काले तिल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
– अभिषेक करते हुए -ॐ क्षौं ह्रौं हुं शिवाय नम: का जाप करें
– शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें

7) शहद मिश्रित गंगा जल
– संतान प्राप्ति व पारिवारिक सुख-शांति हेतु शहद मिश्रित गंगा जल से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘चंद्रमौलेश्वर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ” शहद मिश्रित गंगा जल” भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ चन्द्रमसे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर शहद मिश्रित गंगा जल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
– अभिषेक करते हुए -ॐ वं चन्द्रमौलेश्वराय स्वाहा’ का जाप करें
– शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें

8) घी व शहद
– रोगों के नाश व लम्बी आयु के लिए घी व शहद से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘त्रयम्बक’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘घी व शहद’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ धन्वन्तरयै नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर घी व शहद की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
– अभिषेक करते हुए -ॐ ह्रौं जूं स: त्रयम्बकाय स्वाहा” का जाप करें
– शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें

9 ) कुमकुम केसर हल्दी
– आकर्षक व्यक्तित्व का प्राप्ति हेतु भगवान शिव का कुमकुम केसर हल्दी से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘नीलकंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘कुमकुम केसर हल्दी और पंचामृत’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें – ‘ॐ उमायै नम:’ का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ‘ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– पंचाक्षरी मंत्र पढ़ते हुए पात्र में फूलों की कुछ पंखुडियां दाल दें-‘ॐ नम: शिवाय’
– फिर शिवलिंग पर पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
– अभिषेक का मंत्र-ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रौं नीलकंठाय स्वाहा’
– शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें

इन रसों द्वारा शुद्ध चित्त के साथ भगवान शिव का अभिषेक करने पर भगवान भक्त की सभी कामनाओं की पूर्ति करते हैं। श्रावण माह में भगवान शिव का अभिषेक विशेष फलदायी होता है। 

भोले में समायी है सारी दुनिया. जगत के कण-कण में है महादेव का वास. तभी तो महादेव हर रूप में करते हैं भक्तों का कल्याण. फिर चाहे महादेव की प्रतिमा की पूजा हो या फिर लिंग रूप उनकी आराधना.

धरती पर शिवलिंग को शिव का साक्षात स्वरूप माना जाता है तभी तो शिवलिंग के दर्शन को स्वयं महादेव का दर्शन माना जाता है और इसी मान्यता के चलते भक्त शिवलिंग को मंदिरों में और घरों में स्थापित कर उसकी पूजा अर्चना करते हैं. यू को भोले भंडारी एक छोटी सी पूजा से हो जाते हैं प्रसन्न लेकिन शिव आराधना की सबसे महत्वपूर्ण पूजा विधि रूद्राभिषेक को माना जाता है. रूद्राभिषेक… क्योंकि मान्यता है कि जल की धारा भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और उसी से हुई है रूद्रभिषेक की उत्पत्ति. रूद्र यानी भगवान शिव और अभिषेक का अर्थ होता है स्नान करना. शुद्ध जल या फिर गंगाजल से महादेव के अभिषेक की विधि सदियों पुरानी है क्योंकि मान्यता है कि भोलभंडारी भाव के भूखे हैं. वह जल के स्पर्श मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं. वो पूजा विधि जिससे भक्तों को उनका वरदान ही नहीं मिलता बल्कि हर दर्द हर तकलीफ से छुटकारा भी मिल जाता है.

राशि अनुरूप शिवजी के अभिषेक मंत्र

मेष राशि के जातक- ॐ तेजोनिधये नम: मंत्र का पाठ करें व दही से शिवजी का अभिषेक करें। 

वृषभ राशि के जातक- ॐ मंगलाय नम: का पाठ करते हुए शक्कर मिश्रित जल से भोलेनाथ का अभिषेक करें। 

मिथुन राशि के जातक- ॐ वागीशाय नम: का पाठ करते हुए हल्दी मिश्रित जल से भगवान शिव का अभिषेक करें। 

कर्क राशि के जातक- ॐ महाभुजाय नम: का जप करते हुए शिवजी को काले तिल और जल से अभिषेक करें।
सिंह राशि के जातक- ॐ बभ्रवे नम: का जाप करते हुए सौंफ मिश्रित जल से भोलेनाथ को चढ़ाएं। 

कन्या राशि के जातक- ॐ जीवाय नम: का जाप करते हुए पीली सरसों जल में मिलाकर शिवजी के अवतार रुद्र को अर्पित करें। 

तुला राशि के जातक- ॐ भूमिपुत्राय नम: का जाप करें और जल तथा बिल्वपत्र शिव-पार्वती को चढ़ाएं। 
वृश्चिक राशि के जातक- ॐ महिप्रियाय नम: का जप करें और दूध से शिव-पार्वती, गणेश, कार्तिकेय को स्नान कराएं। 

धनु राशि के जातक- ॐ सोमयाय नम: का पाठ करें और शुद्ध घी से शिवजी का अभिषेक करें। 

मकर राशि के जातक- ॐ गंगाधराय नम: का पाठ करें और जल में अक्षत मिला शिवजी का अभिषेक करें। 

कुंभ राशि के जातक- ॐ भास्कराय नम: का जप करें और गुड़ मिश्रित जल शिवजी को अर्पण करें।

मीन राशि के जातक- ॐ भास्कराय नम: के पाठ के साथ हरी इलायची मिश्रित जल से भोलेनाथ का अभिषेक करें। 

महादेव को प्रसन्न करने का रामबाण उपाय है रुद्राभिषेक. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो सही समय पर रुद्राभिषेक करके आप शिव से मनचाहा वरदान पा सकते हैं. क्योंकि शिव के रुद्र रूप को बहुत प्रिय है अभिषेक तो आइए जानते हैं, रुद्राभिषेक क्यों है इतना प्रभावी और महत्वपूर्ण….

रुद्राभिषेक की महिमा
भोलेनाथ सबसे सरल उपासना से भी प्रसन्न होते हैं लेकिन रुद्राभिषेक उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय है. कहते हैं कि रुद्राभिषेक से शिव जी को प्रसन्न करके आप असंभव को भी संभव करने की शक्ति पा सकते हैं तो आप भी सही समय पर रुद्राभिषेक करिए और शिव कृपा के भागी बनिए…
– रुद्र भगवान शिव का ही प्रचंड रूप हैं.
– शिव जी की कृपा से सारे ग्रह बाधाओं और सारी समस्याओं का नाश होता है.
-शिवलिंग पर मंत्रों के साथ विशेष चीजें अर्पित करना ही रुद्राभिषेक कहा जाता है.
– रुद्राभिषेक में शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों का पाठ करते हैं.
– सावन में रुद्राभिषेक करना ज्यादा शुभ होता है.
– रुद्राभिषेक करने से मनोकामनाएं जल्दी पूरी होती हैं.
– रुद्राभिषेक कोई भी कष्ट या ग्रहों की पीड़ा दूर करने का सबसे उत्तम उपाय है.

कौन से शिवलिंग पर करें रुद्राभिषेक?
अलग –अलग शिवलिंग और स्थानों पर रुद्राभिषेक करने का फल भी अलग होता है. आइए हम आपको बताते हैं कि कौन से शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना ज्यादा फलदायी होता है…
– मंदिर के शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना बहुत उत्तम होता है.
– इसके अलावा घर में स्थापित शिवलिंग पर भी अभिषेक कर सकते हैं.
– रुद्राभिषेक घर से ज्यादा मंदिर में, नदी तट पर और सबसे ज्यादा पर्वतों पर फलदायी होता है.
– शिवलिंग न हो तो अंगूठे को भी शिवलिंग मानकर उसका अभिषेक कर सकते हैं.