सूर्य द्वादश ( बारह ) संक्रान्तियॉ व्रत, पर्व एवं महोत्सव में सम्मिलित है । इन संक्रान्तियों को प्रतिमाह की सूची में उनके आसन्न अंग्रज तारीख के साथ् दिया गया हैा स्पष्ट सूर्य गणित के अनुसार इनकी तिथि एक दिन आगे पीछे होती रहती है। ये द्वादश संक्रान्तियॉं है- मेष वृष, मिथून, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर कुम्भ, मीन।
चतुर्दश्यष्टमी चैव अमावास्या च पूर्णिमा । पर्वाण्येतानि राजेन्द्र । रविसंक्रान्तिरेव च ।।
चतुर्दशी, अष्टमी आमावास्या, पूर्णिमा एवं सूर्य क द्वादश संक्रान्तियॉं पर्व कहलाती हैा सूर्य संक्रान्ति से ही वर्ष, ऋतु, एवं अयन का निर्धारण होता है। देव एवं असुरो क दिन – रात्रियॉं सूर्य संक्रान्ति से ही निर्धारित होती है। सूर्य संक्रान्ति के दिन स्नान- दान- व्रत – जप – श्राद्ध- होम किया जाता है। मेष और तुला की संक्रान्ति को विषुव संक्रान्ति कहते है। मकर और कर्क की संक्रान्ति को अयन संक्रान्ति कहते है। मिथून, कन्या, धनु, मीन संक्रान्ति को षडशीतिमुख संक्रान्ति कहते है। सामान्यरूप से संक्रान्ति से १६ घटी ( ६ घंटा २४ मिनट ) पूर्व और पश्चात् पुण्यकाल होता है। मकर और कर्क संक्रान्ति को छोड़कर अन्य संक्रान्तियों में यदि मध्यरात्रि में संक्रमण हो तो दोनों दिन पुण्यकाल होता है। यदि सूर्यास्त के बाद मकर संक्रान्ति हो तो अगले दिन स्नान- दान हेतु पुंण्यकाल होता है। अद्धरात्रि या रात्रि में कर्क संक्रान्ति होने पर पुण्यकाल पूर्वदिन ही होता है-
यदास्तमयवेलायां मकरे याति भास्कर: । प्रदोषे चाद्धेरात्रे वा स्नानं दानं परेsहनि।।
अद्धेरात्रे तदूर्ध्वं वा संक्रान्तौ दक्षिणायने। पूर्वमेव दिनं ग्राहा्ं यावन्नेदयते रवि:।। गर्ग संहिता।
कर्क संक्रान्ति में सूर्योदय से ३ घटी ( ७२ मिनट ) पहले संक्रमण होने पर पूर्व दिन ही पुण्यकाल होता है। यदि सूर्योदय पूर्व से ३ घटी के अन्दर संक्रमण हो तो अगले दिन पुण्यकाल होगा।