वधुप्रवेश- नवविवाहिता का पिता के घर से विदा होकर पति के घर प्रथम प्रवेश को वधूप्रवेश कहते है। वधूप्रवेश १६ दिन के भीतर समदिनों एवं ५, ७, ९, विषम दिनों में होता है। एक वर्ष के भीतर विषम मासों में होता है। वधूप्रवेश में शुक्र का विचार नही होता।
द्विरागमन- वधूप्रवेश के बाद पति के घर से पिता के घर में आयी हुई वधू का पुन: पतिगृह में प्रवेश को द्विरागमन कहा जाता है। यह विष्म वर्षो में कुम्भ , वृश्चिक एवं मेष के सूर्य में कियाजाता है- घटालिमेषगे रवौ। मुहूर्तमार्तण्डग्रन्थ के अनुसार विलम्बित वधूप्रवेश एवं द्विरागमन वैशाख, फाल्गुन एवं मार्गशीर्ष मास में किया जाता है- ‘ वैफामार्गसिते जगु: ‘ ( ४/४० ) । वैशाख में मेष का सूर्य,मार्गशीर्ष में वृश्चिक का सूर्य तथा फाल्गुन में कुम्भ का सूर्य प्रायश: होता है। द्विरागमन में शुक्र का विचार होता है। सम्मुख एवं दक्षिण शुक्र अशुभ होता है। वाम एवं पृष्ठ शुक्र शुभ होता है। प्रथम संतान को लेकर यात्रा करते समय भी शुक्र का विचार होता है। वधूप्रवेश एवं द्विरागमन खरमास, हरिशयन, गुरू- शुक्र के अस्त में नहीं किया जाता है। रेवती से मृगशीर्ष तक चन्द्रमा के रहने पर शुक्र अन्धा रहता है। इसमें अनिवार्य होने पर विदाई होती है।