स्त्री के जीवन में वैधव्य जीवन काटना बड़ा ही मुश्किल हो जाते है। यदि कम उम्र में पति की मृत्यु हो जाए और स्त्री तो दो-तीन बच्चे हों, तो उसका जीवन बड़ा ही कष्टदायक होता है। हम यहाँ पर वर्षों के शोध का आंकलन प्रस्तुत कर रहे हैं, ताकि हमारे पाठक समझ सके कि किन ग्रहों केकारणवैधव्ययोगबनताहै।
यदि इन वैधव्य ग्रहों के संबंध बनने पर संतान न हो, तो उसके जीवन में ऐसा अभिशाप जल्द देखने को नहीं मिलेगा। कोई भी व्यक्ति अमर जड़ी-बूटी तो खाकर नहीं आया है। मरना एक शाश्वत सत्य है, लेकिन अकाल मृत्यु व अशुभ ग्रहों से अवश्य बचा जा सकता है।
वैधव्य योग के लिए सप्तमभाव स्त्री की कुंडली में पति का व पति की आयु का भाव लग्न से द्वितीय होता है। दाम्पत्य जीवन के कारक शुक्र का विशेष अध्ययन करना चाहिए। यदि ये भाव व ग्रह दूषित हो तो उपाय करना ही श्रेष्ठ होगा। यदि विवाह हो गया है तब भी उपाय कर वैधव्य योग से बचा जा सकता है।
सप्तम भाव का स्वामी मंगल होने से व शनि की तृतीय सप्तम या दशम दृष्टि पड़ने से वैधव्य योग बनता है। यदि इन पर गुरु या चन्द्रमा की दृष्टि पड़े, तो वैधव्य योग न बनते हुए पति को कष्टकारी पीड़ा भोगनी पड़ सकती है। सप्तमेश का संबंध शनि मंगल से बनता हो व सप्तमेश निर्बल हो तो वैधव्य का योग बनता है। ऐसी स्थिति वाली स्त्री कम उम्र में विधवा हो जाती है।
उपाय – कन्या को 5 साल तक मां मंगला गौरी की पूजा करनी चाहिए। विवाह से पहले कुंभ विवाह करना चाहिए। विवाह के बाद इस योग का पता चले तो पति – पत्नी को मंगल और शनि के उपाय करने चाहिए।
एस्ट्रोगृह की सेवा – एस्ट्रो गृह द्वारा आपकी कुंडली का अध्ययन कर आपके कल्याण के लिए इस दोष के निवारण हेतु शांति पूजा करायी जाती है |आपके कल्याण के लिए पूजा अनुष्ठान आपके घर में भी किया जाता है |पूजन सामग्री एवं समस्त व्यय की व्यवस्था आपको करनी पड़ती है |दक्षिणा एवं समय के लिए astrograh.com@gmail.com पर आप जानकारी ले सकते है |आप इसे ऑनलाइन करवा सकते है इस हेतु आपका का नाम पिता का नाम गोत्र जन्म तिथि ,समय ,स्थान की जानकारी भेजे दूरभास पर आपसे संकल्प लेकर आपके लिए वैदिक रीति से पूजा की जाती है ,जिससे आपका दूर होता है | एवं चहु विधि कल्याण होता है एवं विपत्तियों से रक्षा होती है |
दक्षिणा -11100.00