हमारी प्रेरणा

हमारी प्रेरणा- परम पूज्य महावतार महाराज जी

ब्रह्मलीन परम पूज्य तात वाले बाबा जी – ऋषिकेश

परम पूज्य गुरूजी स्वामी निर्भय दास जी महाराज

पं. कालू राम शुक्ला जी

चिरंजीवी योगी महावतार बाबा जी किसी परिचय के मोहताज नहीं है | क्या सचमुच ही वे 5,000 वर्षों से जिंदा हैं? सचमुच महावतार बाबा का रहस्य बरकरार है। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने आदिशंकराचार्य को क्रिया योग की शिक्षा दी थी और बाद में उन्होंने संत कबीर को भी दीक्षा दी थी। इसके बाद प्रसिद्ध संत लाहिड़ी महाशय को उनका शिष्य बताया जाता है हिमालय के सिद्ध महायोगी महावतार बाबा जी ही हमारी प्रेरणा है वैसे तो बाबाजी के बारे में काफी कहानिया प्रचलित है लेकिन हमारे गुरु जी स्वामी निर्भय दास जी महाराज जी ने हमें जो बताया हम उसका विवरण प्रस्तुत कर रहे है |

बाबा जी की उम्र आज भी रहस्य-  हमारे गुरु जी जिनकी आज उम्र 109 वर्ष है एवं जीवन का काफी समय उन्होंने हिमालय ,चित्रकूट धाम एवं नर्मदा नदी के तट पर व्यतीत किया है एवं आज भी नर्मदा किनारे ही तपस्या में लीं है | उनके श्री मुख से सुना गया विवरण मै आपसे साझा कर रहा हूँ | उन्होंने बताया की बाबाजी का शरीर पारदर्शी है एवं बाबाजी की उम्र का कोई अंदाजा नहीं है 2000 वर्ष से अधिक की उनकी उम्र हो सकती है |

बाबाजी से हमारे गुरूजी की मुलाकात – हमारे गुरूजी के गुरु जी थे हरिद्वार के पास ऋषिकेश की भूतनाथ की गुफा में साधना करने वाले टाट वाले बाबाजी | हमारे गुरु जी उन्ही के शिष्य है | बात सन 1965 के आसपास की है हमारे गुरु जी अपने गुरु जी की सेवा में हमेशा तल्लीन रहते थे लेकिन अक्सर रात्रि के समय जब गुरु जी साधना करते थे तो सभी शिष्यों को निर्देश था कि गुरु जी के बुलाने पर ही गुफा में साधना कक्ष में प्रवेश करे |एक दिन रात्रि में हमारे गुरु जी स्वामी निर्भय दास जी महाराज जी गुफा से काफी दूर थे रात्रि लगभग 12 बजे गुरु जी का स्वर उन्हें सुनाई दिया तथा गुरु जी ने उन्हें गुफा में आने का आदेश दिया | हमारे गुरूजी गुरु आज्ञा मानकर तत्काल गुरु सेवा में उपस्थित हो गए |वहां का द्रश्य देखकर हमारे गुरु जी आश्चर्यचकित हो गए उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ सामने देखा तो एक योगी (महावतार बाबा जी) अपने अन्य 8 साथियों के साथ (जिनमे से 2 विदेशी दिखाई देते थे) गुरु जी के साथ चर्चा में तल्लीन थे | महावातर बाबा जी का पारदर्शी शारीर था एवं उनकी आभा चारो तरफ बिखर रही थी | इस प्रकार अचानक किसी और का आगमन देखकर सभी नाराज हुए एवं उनके गुरु जी टाट वाले बाबा जी से पूछा | गुरु जी मंद मंद मुस्कुराये और बोले यह मेरे ही आदेश से आया है |आपके दर्शनों का अभिलाषी था मैंने इजाजत दे दी ,इसे क्षमा करे | तब पहली बार हमारे गुरु जी ने महावतार बाबा के दर्शन किये |और दुबारा जब हमारे गुरु जी ने अनुमति चाही की अब मै आपके दर्शन कैसे कर पाउँगा | तो महावतार बाबा जी ने कहाँ कि बेटा साधू बनना सरल है लेकिन सिद्धि पाना कठिन आज तो तुम अपने गुरु की कृपा से मिल लिए हो | दोनों समय सिर्फ भोजन कर तपस्या करने वाले तुम अगर मुझसे मिलना चाहते हो तो 12 वर्ष तक निराहार रहकर बिना अन्न का सेवन किये तुम बेलपत्र खाकर तपस्या करो मै तुम्हे संकेत दूंगा तब मिलने आना | वह पहला दिन था जब हमारे गुरु जी ने अपने गुरु जी की आज्ञा से पहली बार महावतार बाबा के दर्शन किये | हमारे गुरु जी बताते है कि आज भी वह छवि आँखों में बसी है | गुरु जी की सेवा करते हुए इसके बाद हमारे गुरु जी ने भूतनाथ की गुफा में काफी समय व्यतीत किया | जब गुरु जी के गुरु जी टाट वाले बाबा जी ने 1974 में शरीर का त्याग किया और ब्रम्हलीन हुए तब उन्होंने उसके पहले ही  हमारे गुरु जी को आज्ञा दी कि बाकी तपस्या वह चित्रकूट धाम में पूरी करे |गुरु जी की आज्ञा से हमारे गुरूजी तपस्या के लिए 1970 में  चित्रकूट क्षेत्र आ गए और वहां पर एक निर्जन स्थान पर अमरावती आश्रम के नाम से एक जल स्तोत्र वाली जगह पर रहकर श्री हनुमान जी के मंदिर की स्थापना की और निराहार रहकर बेलपत्र का सेवन करते हुए साधना की और वहां पर रह रहे साधुओ का सत्संग किया |

महावतार बाबा जी से दूसरा साक्षात्कार – हमारे गुरु जी बताते है की जब वह साधना में लींन थे एवं उन्होंने तपस्या की तो उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने संन 1984 में गुरु जी को महावतार बाबा जी का संकेत मिला तो हमारे गुरु जी उनसे मिलाने हिमालय की ओर प्रस्थान किये | जहाँ पर रूद्र प्रयाग में महावतार बाबाजी ने उन्हें दर्शन दिए | इसके पश्चात् हमारे गुरु जी जिला चित्रकूट में अमरावती आश्रम नामक स्थान पर कुछ समय साधना के उपरांत वह हिमालय चले गए और वहां गौमुख में काफी समय तक साधना किये | तत्पश्चात वर्ष 2004 में पुनः वापस अपने स्थान आये और पूरा समय नर्मदा किनारे साधना में लींन रहकर साधना करते है |शिष्यों के कल्याण हेतु बहुत से छोटे आश्रम बनाकर उन्हें दुसरे साधुओ के लिए त्याग दिया और कभी भी एक स्थान पर नहीं रहे |आज उनकी उम्र का 109 वा वर्ष चल रहा है और समय के साथ शारीर भी क्षीण होता जा रहा है | उन्होंने ही मुझे मार्गदर्शन दिया है कि मै जन कल्याण हेतु कुछ कार्य सांसारिक गतिविधियों के साथ साथ अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए करू |जिस उद्देश्य से मैंने इस वेबसाइट की स्थापना की है | जिसका उद्देश्य कहीं भी व्यावसायिक न होकर मात्र जनकल्याण है |अगर मै गुरु आज्ञा से किसी का भी किसी भी प्रकार भला कर पाया तो मै अपने आप को धन्य समझूगा |

स्वर्गीय पं. कालू राम शुक्ला जी – विन्ध्य प्रदेश के रीवा राज्य के सागरा गाँव में जन्मे पं.कालूराम शुक्ला जी हनुमान जी के अच्छे उपासक रहे है | उन्हें ज्योतिष का काफी अच्छा ज्ञान था ,कुंडली गृह नक्षत्रो का एवं फलित ज्योतिष का उन्हें काफी ज्ञान होने के साथ ही प्रभु हनुमान जी की सिद्धि प्राप्त थी | उनका कुशल मार्गदर्शन उनके जीवन पर्यंत हमें मिलता रहा है,एवं ज्योतिष की बारीकियो को उन्होंने बड़ी ही सहजता से समझाया है |

                                                                                            सादर

आचार्य, संपादक सनातन पंचांग,
M.A, M.Ed, M.sc (IT), L.L.B,
शिक्षा शास्त्री, कुंडली विशेषज्ञ, योग, वैदिक गणितज्ञ

हस्तरेखा, वैदिक ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्री,
B.E (Civil), M.B.A, PGDR & NGOD,
B.A (English Lit.), M.A (Sociology)