कन्याओं का पंचममास से आरम्भ कर विषम मास में अत्रप्राशन होता है। बालकों का षष्ठ मास से आरम्भ कर सममास में अत्रप्रशान होता है। खरमास, पितृपक्ष एवं अन्य घातक दोषों को छोड़कर सभी मासों में इसे किया जाता है। नियतकालिक संस्कार होने के कारण इसमें शुक्रास्त आदि दोष नहीं देखा जाता है। आश्विनी, रोहिणी, मृगशीर्ष, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उतरा, हस्त, चित्रा, स्वाती, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती प्रभृति १६ नक्षत्रों में अत्रप्राशन होता है। २, ३, ५, ७, १०, १३, १५ तिथियों में तथा सोम, बुध, बृहस्पति, शुक्र वारों में अत्रप्राशन किया जाता है।
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