योग (ज्योतिष)

कुछ ग्रह योग अशुभ माने जाते हैं जो व्यक्ति के जीवन का सुख चैन छीन लेते हैं तो कुछ ऐसे शुभ ग्रह हैं जो व्यक्ति का जीवन संवार देते हैं। ज्योतिषशास्त्र में बताये गये कुछ उत्तम योग हैं महालक्ष्मी योग, नृप योग आदि.

ज्योतिष विधा ग्रह और उनके योगों के आधार पर फल का ज्ञान देता है  महान योगों में

महालक्ष्मी योग –  धन और एश्वर्य प्रदान करने वाला योग है। यह योग कुण्डली  में तब बनता है जब धन भाव यानी द्वितीय स्थान का स्वामी बृहस्पति एकादश भाव में बैठकर द्वितीय भाव पर दृष्टि डालता है। यह धनकारक योग माना जाता है। इसी प्रकार एक महान योग है

सरस्वती योग – यह तब बनता है जब शुक्र बृहस्पति और बुध ग्रह एक दूसरे के साथ हों अथवा केन्द्र में बैठकर एक दूसरे से सम्बन्ध बना रहे हों। युति अथवा दृष्टि किसी प्रकार से सम्बन्ध बनने पर यह योग बनता है। यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में बनता है उस पर विद्या की देवी मां सरस्वती की कृपा रहती है। सरस्वती योग वाले व्यक्ति कला, संगीत, लेखन, एवं विद्या से सम्बन्धित किसी भी क्षेत्र में काफी नाम और धन कमाते हैं।

नृप योग- नाम से ही ज्ञात होता है कि यह जिस व्यक्ति की कुण्डली  में बनता है वह राजा के समान जीवन जीता है। इस योग का निर्माण तब होता है जब व्यक्ति की जन्म कुण्डली में तीन या उससे अधिक ग्रह उच्च स्थिति में रहते हैं।

 अमला योग – भी शुभ और महान योगों में से माना जाता है। यह योग तब बनता है जब जन्म पत्रिका में चन्द्रमा से दशम स्थान पर कोई शुभ ग्रह स्थित होता है। इस योग के साथ जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने जीवन में धन, यश और कीर्ति हासिल करता है।

गजकेशरी योग  को असाधारण योग की श्रेणी में रखा गया है। यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में उपस्थित होता है उस व्यक्ति को जीवन में कभी भी अभाव नहीं खटकता है। इस योग के साथ जन्म लेने वाले व्यक्ति की ओर  धन, यश, कीर्ति स्वत: खींची चली आती है। जब कुण्डली में गुरू और चन्द्र पूर्ण कारक प्रभाव के साथ होते हैं तब यह योग बनता है। लग्न स्थान में कर्क, धनु, मीन, मेष या वृश्चिक हो तब यह कारक प्रभाव के साथ माना जाता है। हलांकि अकारक होने पर भी फलदायी माना जाता परंतु यह मध्यम दर्जे का होता है। चन्द्रमा से केन्द्र स्थान में 1, 4, 7, 10 बृहस्पति होने से गजकेशरी योग बनता है। इसके अलावा अगर चन्द्रमा के साथ बृहस्पति हो तब भी यह योग बनता है।

पारिजात योग –  भी उत्तम योग माना जाता है लेकिन इस योग की विशेषता यह है कि यह जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है वह जीवन में कामयाबी और सफलता के शिखर पर पहुंचता है परंतु रफ्तार धीमी रहती है यही कारण है कि मध्य आयु के पश्चात इसका प्रभाव दिखाई देता है। पारिजात योग का निर्माण तब होता है जबकि जन्म पत्रिका में लग्नेश जिस राशि में होता है उस राशि का स्वामी कुण्डली में उच्च स्थान पर हो या अपने घर में हो।

छत्र योग –  जिस व्यक्ति की जन्म पत्रिका  में होता है वह व्यक्ति जीवन मे निरन्तर प्रगति करता हुए उच्च पद प्राप्त करता है। इस भगवान की छत्र छाया वाला योग कहा जा सकता है यह योग तब बनता है तब कि कुण्डली में चतुर्थ भाव से दशम भाव तक सभी ग्रह मौजूद हों या फिर दशम भाव से चतुर्थ भाव तक सभी ग्रह स्थित हों।

 नन्दा योग – तीन भावों में दो दो ग्रह हों तथा तीन भावों में एक एक ग्रह स्थित हों तब शुभ योग बनता है जो

नन्दा योग के नाम से जाना जाता है। यह योग जिस व्यक्ति की जन्म पत्रिका में होता है वह स्वस्थ एवं दीर्घायु होता है। इस योग से प्रभावित व्यक्ति का जीवन सुखमय रहता है।

इसी प्रकार के कई अन्य योग हैं जिनकी मौजूदगी से व्यक्ति का जीवन सुखमय व आनन्दित रहता है और व्यक्ति यश एवं कीर्ति हासिल करता है।

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