स्वयं तथा परिवार के क्षेम, स्थिरता, विजय, आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए उमा महेश्वर की प्रीति के लिए सोमवार के लिए सोमवार व्रत किया जाता है। यह व्रत न्यूनतम एकमास या एकवर्ष से लेकर चौदहवर्षो तक के लिए उठाया ( संकल्पित किय ) जाता है। श्रावणमास, चैत्रमास, वैशाखमास, ज्येष्ठमास तथा मार्गशीर्षमास के सोमवार को व्रत करना पुण्यदायक होता है-श्रावणे चैत्रवैशाखे ज्येष्ठवा मार्गशीर्षके। सोमवारव्रतं पुण्य कथ्यमानं निबोध मे ।। ( व्रतराज ) सम्पूर्णश्रावणमास में सोमवारव्रत करने से श्री, समृद्धि, संतति, सौभाग्य, अक्षयलोक एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत के प्रभाव से सात जन्मों के पाप विनष्ट हो जाते है। जो व्यक्ति वर्षर्यन्त सोमवार का व्रत करता है उसके ऊपर भगवती पार्वती एवं भगवान् शिव की कृपा होती है।
भगवान् शिव का ध्यान मंत्र निम्नवद् है-
ध्यायेत्रित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारूचन्द्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलाग्डं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् । पदा्सीनं समन्तासत्स्तुतममरगणैव्याघ्रकृतिं विश्वद्यं विश्वन्द्यं निखिलभयहरं पश्ज्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ।।
ऊँ नम: शिवाय मंत्र से भगवान् शिव की पूजा षोडषोपचारविधि से करने चाहिए । भगवान् शिव की पूजा से इस लोक में सुख, स्वर्गलोक में संस्थिति और शिवलोक में मोक्षदायक स्थान प्राप्त होता है। केवल सोमवार के दिन शिव की पूजामात्र से भी इस पृथ्वी पर कुछ भी अप्राप्तव्य नही रहता- केवलं चापि ये कुर्य: सोमवारे शिवार्चनम् । न तेषां विद्यते किंचिदिहामुत्र च दुर्लभम् ।।सोमवार के दिन शिव क पूजा करके ब्रह्रा्चारी, गृहस्थ, यति प्रभृति पुरूष और अविवाहिता, विवाहिता, विधवा आदि स्त्रियॉं अभीष्ट वर को प्राप्त करती है। सोमवार व्रत में सफेद पुष्प, श्वेत मदार, मालती, सफेद कमल, चम्पा, कुन्द तथा पुन्नग पुष्प को भगवान् शिव एवं भगवती पार्वती के ऊपर चढ़ाया जाता है। सूर्यास्त के पश्चात् शिवपार्वती की पूजा करके पारणा की जाती है। बिल्वपत्र चढ़ाते समय महामृत्युज्जय मंत्र को बोलना चाहिए। – त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम् । त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ।। भक्तिपूर्वक अर्धनारीश्वरस्तोत्र,शिवमहिम्नस्तोत्र, शिवताण्डवस्तोत्र, विश्वनाथाष्टक, रूद्राष्टक, रूद्रसुक्त आदि का पाठ करना चाहिए। ऊँ नम: शिवाय इस पंचाक्षर मंत्र का रूद्राक्ष की माला पर जप करना चाहिए। भगवान् शिव एवं भगवती पार्वती की धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन कर अन्त में आरती करनी चाहिए । अंजलि में पुष्प लेकर निम्नलिखित प्रार्थना करनी चाहिए-
भवाय भवनाशाय महादेवाय धीमते। उग्राय चोग्रनाशाय शवार्य शशिमौलिने।।
रूद्राय नीलकण्ठाय शिवाय भवहारिणे । ईशानाय नमस्तुभ्यं सर्वकामप्रदाय च।।
सोमेश्वरस्तथेशान: शंकरो गिरिजाधव:। महेश: सर्वभूतेश: स्मरारिस्त्रिपुरान्तक:।।
शिव: पशुपति: शम्भुस्त्र्यम्बक: शशिशेखर:। गंगाधरो महादेवो वामदेव: सदाशिव:।।
सोमवारव्रत के उद्यापन में हवन अवश्य करना चाहिए। सपत्नीकगुरूपूजा कर दान देना चाहिए।पूजन कराने वाले विप्र को वस्त्रादि के साथ स्वर्ण या गौ आदि का दान करना चाहिए। दान अपनी क्षमता के अनुसार थोड़ा या अधिक किया जाता है। इस व्रत के प्रभाव से व्रतकर्ता भगवान् शिव के लोक को प्राप्त करता है।