विल्व पत्र,पीपल का महत्त्व

* बिल्‍व को बेल या ‘ श्रीफल ‘ कहा जाता है।

* बिल्‍वपत्र भगवान्‍ शिव तथा महालक्ष्‍मी का प्रिय वनस्‍पति है।

* इसके तीन पत्र भगवान् शंकर के त्रिनेत्र के प्रतीक हैं जो सूर्य, चन्‍द्र अग्नि के सूचक है।

* इसकी पतियॉं, जड़े तथा छाल मधुमेह की रोधक है।

* धन प्राप्ति के लिए श्रीसूक्‍त का पाठ करके बिल्‍व की लकड़ी, पतियों तथा फल से हवन करना अत्‍यन्‍त शुभकारी होता है।

* प्रदोष के दिन बिल्‍ववृक्ष को अंक में भर श्रीसुक्‍त का पाठ करने से दारिद्रश्‍च का विनाश होता है।

* शिव मंदिर में बिल्‍व तथा मदार का वृक्ष अवश्‍य लगाया जाता है।

बिल्वपत्र तोड़ने का मंत्र

               अमृतोभ्‍दवश्रीवृक्षमहादेवप्रिय: सदा।

                गृह्रामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्‍।।

                                               आचारेन्‍दु:।

 बिल्‍वपत्र चढ़ाने का मंत्र

               त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्र्ययायुधम्।

               त्रिजन्‍मपापसंहारं बिल्‍वपत्रं शिवार्पणम् ।।

पीपल का महत्‍व

पृथ्‍वी पर भगवान्‍ विष्‍णु ही पीपल के रूप में उत्‍पन्‍न हुए है। अत: पीपल की पूजा और प्रदक्षिणा करने से सभी प्रकार के दारूण कष्‍ट, विप्‍लव एवं उत्‍पात समाप्‍त हो जाते हैं। पीपल की पूजा से राजभय, अग्निभ्‍य , क्षय, अपस्‍मार ( मिर्गी ), कुष्‍ठ, प्रमेह, मूत्ररोग एवं ग्रहपीड़ा समाप्‍त होती है। स्‍नान करे पीपल के नीचे आकर सफेद पुष्‍प, धूप, दीप, अक्षत से पूजा की जात है । पीपल क न्‍यूनतम द्वादश परिक्रमा की जाती है। इसकी एकलाख, दोलाख, तीनलाख, चारलाख, और पॉंचलाख, परिक्रमा करने की विधान है- कार्यस्‍य गौरवं ज्ञात्‍वा द्वादशान्‍तं समाचरेत्‍ । लक्षमेकं द्विलक्षं वा त्रिचतु: पंचलक्षकम्‍। यह परिक्रमा मौन होकर अथवा पुरूषसुक्‍त या विष्‍णुसहस्‍त्रनाम का पाठ करते हुए की जाती है। स्‍वर्ण का पीपल बनाकर दान करने की भी परम्‍परा है। भगवान्‍ ब्रम्‍हा् के अंश से पलाश वृक्ष, भगवान्‍ शिव के अंश से वट वृक्ष तथा भगवान्‍ विष्‍णु के अंश से पीपल की उत्‍पति हुई-  पलाशंत्‍व कथं जातं ब्रहा्ण: शंकरस्‍य च। वटत्‍वं च तथा विष्‍णों: पिप्‍पलत्‍वं ब्रुवन्‍तु तत्‍।।  शनिवार के दिन ही पीपल की पूजा की जाती है। अन्‍य दिन पूजन करने से दरिद्रता बढ़ती है-  अश्‍वत्‍थपूजास्‍पर्शेन कर्तव्‍या शनिवासरे। अन्‍यवारेsश्‍वत्‍थग्‍डदरिद्रो जायते नर:।। पीपल की प्रार्थना

   मूलतो ब्रहा्यपाय मध्‍यतो विष्‍णुरूपिणे। अग्रत: शिवरूपाय अश्‍वत्‍थय नमोनम:।।

देव परिक्रमा संख्‍या

१. भगवान्‍ गणेश की एक या तीन परिक्रमा क जाती है। २. भगवान्‍ सूर्य दो या सात परि्क्रमा की जाती है। ३. भगवान्‍ श्रीकृष्‍ण की चार परिक्रमा की जाती है। ४. पीपल की सात परिक्रमा की जाती है। ५. देवी की एक परिक्रमा की जाती है। ६. भगवान्‍ शिव की आधी परिक्रमा की जाती है।