चैत्र एवं भाद्रपद में गृहारम्‍भ कैसे ?

( गलत परम्‍परा न डाले )

इस वर्ष संवत्‍ २०७४  में भाद्रपदशुक्‍लापूर्णिमा तथा चैत्रकृष्‍ण द्वीतीया में गृहारम्‍भ का मुहूर्त श्रीह्रषीकेशपंचांगम्‍ एवं श्रीआदित्‍यपंचांगम्‍ में दिया है। कतिपय अन्‍य पंचांगो ने इन दोनों महीनों में गृहारम्‍भ का मुहूर्त नही दिया है। श्रीह्रषीकेशपंचांग के स्‍थायी पृष्ठ ३७ पर गृहारम्‍भमुहूर्त सारणी में भाद्रपद एवं चैत्रमास नहीं है। श्रीआदित्‍यपंचांगम्‍ में वास्‍तुप्रदीप ग्रन्‍थ (१/१७) का उल्‍लेख करते हुए कहा है कि – मेषार्क में चैत्र सिंहार्क में भाद्रपद मास में गृहारम्‍भ होता है, जबकि ग्रन्‍थ में कर्क- सिंह के सूर्य में श्रावणमास में गृहारम्‍भ कहा गया है। यहॉं भवति भाद्रपदेsपि सिंहका आशय नही है। वसिष्‍ठसंहिता, नारदसंहिता, मुहूर्त चिन्‍तामणि, विश्‍वकर्मप्रकाश तथा वास्‍तुराजवल्‍लभ आदि गन्‍थों में चैत्र एवं भाद्रपद अस्‍वीकार्य है। वास्‍तुप्रदीपग्रन्‍थ में भी स्‍पष्‍ट दिया है-चैत्रे व्‍याधिमवाप्‍नोति यो गृहं कारयेत्रर:। श्रावणे मित्रलाभस्‍तु हानिर्भाद्रपदे तथा। इस वचन से आदित्‍य पंचांग की स्‍थापना स्‍वत: खण्डित हो जाती है । यदि मासों की संख्‍या बढ़ानी ही है तो वसिष्‍ठसं‍हिता एवं नारदसंहिता के आधार पर माघमास का ग्रहण करना चाहिए। कन्‍या, मिथुन, धनु, एवं मीन के सूर्य में चान्‍द्रमास प्रशस्‍त होने पर भी गृहारम्‍भ वर्ज्‍य है। मुहूर्तशास्‍त्र का उभ्‍दव पुराण एवं संहिता ग्रन्‍थों से हुआ है। वसिष्‍ठसंहिता, गर्गसंहिता, नारदसंहिता में मुहूर्त विषय पर विशद प्रकाश प्राप्‍त होता है। अब यहॉ विचार करते हैं कि चान्‍द्रमास और सौरमास के कारण गृहारम्‍भ मुहूर्त के संदर्भ में विरोध क्‍यों प्राप्‍त होता है ? नारदसंहिता मं गृहारम्‍भ में मार्गशीर्ष – फाल्‍गुन- वैशाख- माघ- श्रावण- कार्तिक चान्‍द्रमास स्‍वीकृत है-

सौम्‍यफाल्गुनवैशाखमाघश्रावणकार्तिका: मासा: स्‍युर्गृह- निर्माणे पुत्रारोग्‍यधनप्रदा:।।३१/२४ देवर्षि नारद के अनुसार मेष, वृष, कर्क, सिंह, तुला, वृश्चिक, मकर, कुम्‍भ का सूर्य होने पर ह गृहारम्‍भ करना चाहिए। इनमे गृहारम्‍भ करने से क्रमश: शुभत्‍व, धनवृद्धि, शुभत्‍व, भृत्‍यवृद्धि, सुख, धनवृद्धि, धनागम, रत्‍नलाभ की प्राप्ति होती है। मिथुन, कन्‍या, धनु, मीन के सूर्य में गृहारम्भ करने से मृत्‍यू , रोग, महाहानि तथा भवन नाशभय होता है-

गृहास्‍थापनं सूर्ये मेषस्‍थे शुभदं भवेत्‍ । वृषस्‍थे धनवृद्धिस्‍यान्‍ मिथुने मरणं ध्रुवम्‍ ।।

कर्कटे शुभदं प्रोक्‍तं सिंहे भृत्‍यविवर्धनम्‍ । कन्‍यारोगं तुले सौख्‍यं वृश्चिके धनवर्धनम्‍ ।।

कार्मुके तु महाहानिर्मकरे स्‍याद्धनागम:। कुम्‍भे तु रत्‍नलाभ: स्‍यान्‍ मीने सदाभयावहम्‍ ।।

देवर्षिनारद के अनुसार चैत्र एवं भाद्रपद मास में गृहारम्‍भ वर्जित है। सिंह का सूर्य तो आश्विनकृष्‍णपक्षद्वादशी तक है फिर उसमें गृहारम्भ मुहूर्त क्‍यों नहीं दिया गया? नारदसंहिता एवं मुहूर्तचिन्‍तामणि ( वास्‍तुप्रकरण श्‍लोक १५ ) दोनों ग्रन्‍थों में यह स्‍प्‍ष्‍ट है कि सिंह और कर्क राशि के सूर्य में श्रावणमास में गृहारम्‍भ करना चाहिए- श्रावणे सिंहकर्क्‍यो:।  (मु.चि.)। पीयुषधारा टीका में भी है कि श्रावाणमास में कर्क और सिंह के सूर्य में पूर्व और पश्चिम मुख वाले भवनो का गृहारम्‍भ करना चाहिए। यहॉ कहीं भी भाद्रपदमास स्‍वीकृत नहीं है। मेष एवं वृक्ष के सूर्य में वैशाखमास में गृहारम्‍भ करना चाहिए- गोsजगेsर्के च राधे (मु.चि.)।  पीयुषधारा टीका में इसे स्‍पष्‍ट किया गया है-  अथ गोsजगे वृषमेषगे सूर्ये राधे वैशाखे मासे च। यहॉं भी मेष के सूर्य में चैत्र मास का ग्रहण नहीं है। नारदसंहिता के अतिरिक्‍त सर्वत्र अन्‍य मुहूर्त ग्रन्‍थो में गृहारम्‍भ में केवल चान्‍द्रमास के विधिनिषेध का वर्णन प्राप्‍त है। अत: भाद्रपद एवं चैत्रमास में गृहारम्‍भ का मुहूर्त देना श्रीह्रषीकेशपंचांगम्‍ एवं श्रीआदित्‍यपंचांगम्‍ द्वारा मुहूत्र तत्‍व की अनदेखी है। इस विषय पर विद्वत् परिषद् विचार हेतु तैयार है। इससे शास्‍त्र का पक्ष प्रबल होगा।